Early Puberty: मानव जीवन में यौवनारम्भ या वय:सन्धि (puberty) शारीरिक परिवर्तन की प्रक्रिया है, जिसमें बच्चे एक खास उम्र के बाद किशोरावस्था में जाते हैं और उनमें शारीरिक परिवर्तन आता है. किशोरावस्था में आए शारीरिक परिवर्तन ही कालक्रम में प्रजनन में समर्थ बनाते हैं. इसके बाद बच्चे किशोर और फिर जवान बन जाते हैं. यौवनारम्भ की शुरूआत हार्मोनों में बदलाव के बनने से होती है. किसी बच्चे में ये बदलाव पहले आते हैं तो किसी में देरी से आते हैं.Also Read – Karan Johar अपना स्टेट्स अपडेट कर लिखा- Free, अब क्या मतलब निकाला जाए इसका
क्या होती है प्यूबर्टी की नॉर्मल एज
लड़कों में प्यूबर्टी की नॉर्मल उम्र 9 साल से 14 साल के बीच होती है तो वहीं लड़कियों में ये 8 से 13 साल के बीच आती है. लेकिन, अगर 8 की उम्र से पहले ही लड़कियों में सेकंडरी सेक्शुअल लक्षण (जैसे स्तन का आकार बढ़ना, प्राइवेट पार्ट्स में बाल आना इत्यादि) आते हैं, तो उसे प्रेकोशियस प्यूबर्टी कहा जाता हैं. ऐसे मामले आजकल ज्यादा हो रहे हैं, जिसमें लड़कियों में प्यूबर्टी जल्दी आ रही है. हालांकि, हॉर्मोनल इम्बैलेंस होने की वजह अब भी अज्ञात है और अभी इस पर और रिसर्च की जरूरत है. Also Read – Rytasha Rathore ने कराया न्यूड फोटोशूट, बोलीं- हां, मुझे मेरे वज़नी शरीर से प्यार है, ठरकी नज़रों से न देखना
अचानक बढ़ गए हैं अर्ली प्यूबर्टी के लक्षण
कोरोना की शुरुआत से बच्चियों में आ रहे शारीरिक परिवर्तन की वजह वायरस के संक्रमण को माना जा रहा था. इस विषय पर कई स्टडीज भी हुईं. लेकिन, हाल ही में रोम में हुई 60वीं यूरोपियन सोसाइटी फॉर पीडियाट्रिक एंडोक्रिनोलॉजी मीटिंग में एक रिसर्च पेश की गई और इसमें कहा गया है कि लड़कियों की अर्ली प्यूबर्टी से कोरोना इन्फेक्शन का कोई लेना-देना नहीं है. Also Read – किस्सा- मर्दों जैसी आवाज़ निकालने में Karan Johar को लगे 3 साल, उस दिन एक शख्स चुपचाप पास आया और…
सामने आई चौंकाने वाली वजह
आप यह जानकर हैरान होंगे कि अर्ली प्यूबर्टी आने की प्रमुख वजह लॉकडाउन के दौरान अपने स्मार्ट गैजेट्स के सामने ज्यादा समय बिताना है. इसे साबित करने के लिए तुर्की की गाजी यूनिवर्सिटी और अंकारा सिटी हॉस्पिटल के वैज्ञानिकों ने 18 मादा चूहों पर रिसर्च की. इन चूहों को तरह-तरह की LED लाइट से कम या ज्यादा वक्त के लिए एक्सपोज किया गया.
रिसर्चर्स ने पाया कि जिन चूहों ने लाइट के सामने ज्यादा वक्त बिताया, वे दूसरों के मुकाबले जल्दी मैच्योर हुए. वैज्ञानिकों की मानें तो हमारे डिवाइस की स्क्रीन से निकलने वाली ब्लू लाइट शरीर में मेलाटोनिन हॉर्मोन की मात्रा को घटा सकती है और ये हॉर्मोन हमारे दिमाग में रिलीज होता है और नींद को रेगुलेट करता है. इसके साथ ही रिप्रोडक्शन में काम आने वाले हॉर्मोन्स की मात्रा भी बढ़ सकती है, जिससे प्यूबर्टी समय से पहले ही आ सकती है.