इंदौर: भारत के घटते विदेशी मुद्रा भंडार पर चिंता जताई गई है. साथ ही चेतावनी भी दी गई है कि भारत की श्रीलंका जैसी आर्थिक स्थिति हो सकती हैं. अखिल भारतीय बैंक कर्मचारी संघ (AIBEA) के एक शीर्ष पदाधिकारी ने दावा किया कि अगर इस समस्या की अनदेखी की जाती रही, तो आगे चलकर देश को पड़ोसी श्रीलंका जैसे भीषण आर्थिक संकट का सामना करना पड़ सकता है. एआईबीईए के महासचिव सीएच वेंकटचलम ने इंदौर में संगठन की केंद्रीय समिति की बैठक के बाद संवाददाताओं से कहा, ‘‘सरकार की गलत आर्थिक नीतियों के कारण देश का विदेशी मुद्रा भंडार कम होता जा रहा है. हमारा आयात लगातार बढ़ रहा है, जबकि निर्यात घटता जा रहा है.’’ उन्होंने कहा,‘‘अगर हम विदेशी मुद्रा भंडार घटने की समस्या की यूं ही अनदेखी करते रहे, तो वह दिन दूर नहीं, जब हमें श्रीलंका जैसे बुरे आर्थिक हालात का सामना करना पड़ सकता है.’’Also Read – श्रीलंकाई प्लेयर्स का रवैया उन्हे टी20 वर्ल्ड कप में आगे तक ले जाएगा: कोच सिल्वरवुड
वेंकटचलम ने कहा कि विदेशी मुद्रा भंडार में गिरावट पर रोक लगाने के लिए सबसे पहले जरूरी है कि सरकार सूक्ष्म, लघु और मझोले उद्यमों (MSME) के संकटग्रस्त क्षेत्र की मदद करे ताकि आयात पर निर्भरता घटे और निर्यात को गति मिल सके. एआईबीईए महासचिव ने सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों के निजीकरण को लेकर सरकार के ‘‘मंसूबों’’ पर विरोध जताते हुए कहा,‘‘अगर सरकारी बैंकों का निजीकरण हो गया, तो न केवल जनता की बचत खतरे में आ सकती है, बल्कि ग्रामीणों, किसानों, एमएसएमई क्षेत्र के उद्यमियों और महिलाओं को कर्ज लेने में भारी परेशानी भी होगी.’’ उन्होंने कहा कि सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों के निजीकरण की राह आसान करने के लिए सरकार संसद के आगामी शीतकालीन सत्र में विधेयक पेश कर सकती है. Also Read – रिकॉर्ड मुद्रास्फीति, घटती वृद्धि के बीच वैश्विक अर्थव्यवस्था की स्थिति ज्यादा नाजुक : मूडीज
वेंकटचलम ने चेतावनी दी कि अगर ऐसा कोई विधेयक पेश किया गया, तो सरकारी, निजी, सहकारी और अन्य क्षेत्रों के बैंकों के 3.5 लाख कर्मचारियों की नुमाइंदगी करने वाला एआईबीईए तत्काल हड़ताल पर चला जाएगा. उन्होंने यह भी कहा कि सरकारी बैंक कार्यबल की गंभीर कमी से जूझ रहे हैं और पर्याप्त तादाद में नयी भर्तियां करके इस कमी को जल्द दूर नहीं किया गया, तो एआईबीईए को हड़ताल पर जाने को मजबूर होना पड़ेगा. Also Read – ब्रिटेन को पछाड़कर भारत बना दुनिया की 5वीं सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था, अब चार देश ही आगे