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Tuesday, June 6, 2023

Navratri 2022 Sandhi Puja: क्या होती है संधि पूजा? जानें शुभ मुहूर्त, पूजा विधि और महत्व

Navratri 2022 Sandhi Puja: भारत के सभी हिस्सों में दुर्गा पूजा का उत्सव शुरू हो चुका है. आश्विन मास के शुक्ल पक्ष की षष्ठी तिथि से दुर्गा पूजा का शुभारंभ होता है. शारदीय नवरात्रि की अष्टमी और नवमी तिथि के बीच संधि पूजा की जाती है. नवरात्रि के दौरान संधि पूजा का विशेष महत्व होता है. संधि पूजा अष्टमी के खत्म होने और नवमी के लगने के बाद के काल तक की जाती है. इस दिन पारंपरिक वस्त्रों में और पारंपरिक विधि से देवी की पूजा का विधान होता है. आइए जानते हैं संधि पूजा का शुभ महत्व महत्व और पूजन विधि के बारे में.Also Read – Maha Navami 2022 Wishes: दुर्गा नवमी पर अपने दोस्तों व रिश्तेदारों को भेजें ये शुभकामना संदेश

कब है संधि पूजा 2022

नवरात्रि में संधि पूजा का विशेष महत्व है और पूजा अष्टमी तिथि के खत्म होने के आखिरी 24 मिनट और नवमी तिथि के शुरू के 24 मिनट बाद तक की जाती है. यानि इस पूजा के लिए भक्तों को 48 मिनट का समय मिलता है. हिंदू पंचांग के अनुसार संधि पूजा का शुभ मुहूर्त 3 अक्टूबर 2022 को शाम 04 बजकर 13 से शाम 05 बजर 01 मिनट तक है. Also Read – Navratri 2022: नौवें दिन इस शुभ मुहूर्त में करें मां सिद्धिदात्री की पूजा और यह आरती पढ़ना ना भूलें, माता रानी होंगी प्रसन्न

संधि पूजा का महत्व

इस पूजा को अष्टमी और नवमी तिथि को शाम के समय की जाती है. क्योंकि इसमें दो तिथि का मिलन होता है इसलिए इसे संधि पूजा के नाम से जाना जाता है. संधि पूजा को अष्टमी तिथि के आखिरी 24 मिनट और नवमी तिथि शुरू होने के 24 मिनट बाद तक किया जाता है. इसके पीछे की एक कथा के मुताबिक, जिस समय मां चामुण्डा और महिषासुर के बीच में भयंकर युद्ध हो रहा था. उस समय चण्ड और मुंड नाम के दो राक्षसों ने माता चामुण्डा की पीठ पर वार कर दिया था, इसके बाद माता का मुख क्रोध के कारण नीला पड़ गया और माता ने दोनों राक्षस का वध कर दिया था. जिस समय उनका वध संधि काल में हुआ. यह मुहूर्त काफी शक्तिशाली माना जाता है. क्योंकि मां दुर्गा ने इस समय अपनी पूरी शक्ति का प्रयोग कर चण्ड और मुंड का वध कर दिया था. Also Read – Navratri 2022 Maha Navami Date and Timing: कल मनाई जाएगी महा नवमी, जान लें पूजन विध, इन मंत्रों का करें जाप और पढ़ें ये कथा

संधि पूजा की विधि

संधि पूजा में 108 दीपक, 108 कमल, 108 बेल के पत्ते, गहने, पारंपरिक कपड़े, गुडहल के फूल, चावल अनाज (बिना पके) और एक लाल फल व माला का उपयोग कर मां दुर्गा का श्रृंगार किया जाता है. इसके बाद मां दुर्गा के मंत्रों का जाप करके उनकी आरती की जाती है. इस दौरान संधि पूजा का शुभारंम घंटी बजाकर किया जाता है.

डिस्क्लेमर: यहां दी गई सभी जानकारियां सामाजिक और धार्मिक आस्थाओं पर आधारित हैं. India.Com इसकी पुष्टि नहीं करता. इसके लिए किसी एक्सपर्ट की सलाह अवश्य लें.

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